प्रमोचक राकेटों
प्रक्षेपक अथवा प्रमोचक राकेटों का उपयोग अंतरिक्षयान को अंतरिक्ष तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। भारत के पास दो प्रचालनरत प्रक्षेपक हैं : पहला ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (P.S.L.V.) तथा दूसरा भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (G.S.L.V.) । स्वदेशी क्रायोजेनिक ऊपरी चरण से युक्त जी.एस.एल.वी. ने 2 टन भार वाली श्रेणी के संचार उपग्रहों को प्रमोचित करना सक्षम बनाया है । जी.एस.एल.वी. का अगला रूपांतर स्वदेशी उच्च प्रणोद वाले क्रायोजेनिक इंजन से युक्त जी.एस.एल.वी. मार्क-III है, जिसमें 4 टन भार वाली श्रेणी के संचार उपग्रहों को प्रमोचित करने की क्षमता है।
उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में सटीक रूप से स्थापित करने के लिए परिशुद्धता, निपुणता, शक्ति तथा त्रुटिहीन योजना के संयोजन की परमावश्यकता होती है। इसरो के प्रमोचक राकेट कार्यक्रम कई केंद्रों में संपादित किय जाते हैं, जहां 5000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं । तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र प्रमोचक राकेटों के डिजाइन एवं विकास कार्य के लिए उत्तरदायी है। द्रव नोदन प्रणाली केंद्र तथा इसरो नोदन परिसर जो कि क्रमश: वलियमला तथा महेंद्रगिरी में स्थित हैं, इन प्रमोचक राकेटों के लिए नोदन तथा क्रायोजेनिक चरणों का विकास करते हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार, भारत का अंतरिक्ष-पत्तन है तथा यह प्रमोचक राकेटों के समेकन के लिए उत्तरदायी है। दो प्रचालनरत लांच पैडों से युक्त इस केंद्र से जी.एस.एल.वी. तथा पी.एस.एल.वी. अपनी उड़ान भरते हैं।
SLV
उपग्रह प्रमोचन यान (एसएलवी-3) पहला भारतीय प्रायोगिक उपग्रह प्रमोचन यान था। 17 टन भारी व 22 मीटर ऊंचे एसएलवी के सभी चार ठोस चरण थे तथा यह 40 कि.ग्रा. वर्ग के नीतभारों को निम्न पृथ्वी कक्षा (एलईओ) में स्थापित करने में सक्षम था।
18 जुलाई 1980 को शार केंद्र, श्रीहरिकोटा से उपग्रह प्रमोचन यान-3 (एसएलवी-3), के सफल प्रमोचन द्वारा रोहिणी उपग्रह आरएस-1 को कक्षा में स्थापित किया गया और भारत अंतरिक्ष क्षमता वाले खास राष्ट्रों के क्लब का 6वां सदस्य बन गया। वाहन को पूर्व निर्धारित प्रक्षेप पथ पर संचालित करने के लिए इसमें संचित अक्षनति (पिच) कार्यक्रम युक्त विवृत पाश निर्देशन का उपयोग किया गया था। अगस्त 1979 में आयोजित एसएलवी -3 की पहली प्रायोगिक उड़ान आंशिक सफल सफल रही। जुलाई 1980 में आयोजित प्रमोचन के अलावा, मई 1981 और अप्रैल 1983 में एसएलवी-3 के दो और प्रमोचन किए गए जिनके द्वारा सुदूर संवेदी संवेदकों से युक्त रोहिणी उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया गया।
एसएलवी -3 परियोजना ने सफलताओं की पराकाष्ठा हासिल की और उससे संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी), ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पीएसएलवी) तथा भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान (जीएसएलवी) जैसे उन्नत प्रमोचन वाहनों की परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ।
ASLV
उत्थापन के समय 40 टन भारी व 23.8 मी. लंबे पांच चरणों वाले, पूर्णतः ठोस नोदक यान एएसएलवी को 400 कि.मी. वृत्तीय कक्षाओं में परिक्रमारत 150 कि.ग्रा. भारी उपग्रह श्रेणी के मिशनों के लिए संरूपित किया गया था।
संवर्धित उपग्रह प्रमोचन यान (एएसएलवी) को निम्न पृथ्वी कक्षा मिशनों के लिए एसएलवी-3 से तीन गुनी अधिक, 150 कि.ग्रा. नीतभार क्षमता संवर्धन के लिए अभिकल्पित किया गया था। एसएलवी-3 मिशनों से अर्जित अनुभवों को आधार पर बने एएसएलवी ने स्ट्रैपऑन प्रौद्योगिकी, जड़त्वीय दिशानिर्देशन, बल्बीय ताप कवच, लंबवत समाकलन तथा संवृत्त पाश निर्देशन जैसी भावी प्रमोचन वाहनों के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन और उनके वैधीकरण हेतु कम लागत के मध्यवर्ती यान के रूप में अपनी उपयोगिता सिद्ध की थी।
एएसएलवी कार्यक्रम के अंतर्गत चार विकासात्मक उड़ानें आयोजित की गईं। पहली विकासात्मक उड़ान 24 मार्च, 1987 को तथा दूसरी 13 जुलाई 1988 को संपन्न हुई। 20 मई, 1992 को एएसएलवी-डी3 सफल प्रक्षेपण द्वारा 106 कि.ग्रा. भारी श्रोस-सी को 255 x 430 कि.मी. कक्षा में स्थापित किया गया। 4 मई, 1994 को प्रमोचित एएसएलवी-डी4 द्वारा 106 कि.ग्रा. भारी श्रोस-सी2 को कक्षा में स्थापित किया गया। इसमें दो नीतभार नामतः, गामा किरण प्रस्फोट(जीआरबी) परीक्षण तथा मंदन विभव विश्लेषक (आरपीए) लगे थे। इस उपग्रह ने सात साल तक काम किया।
PSLV
प्रमोचक राकेट के बारे में
ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) भारत का तृतीय पीढ़ी का प्रमोचक राकेट है। यह पहला भारतीय प्रमोचक राकेट है जो द्रव चरणों से सुसज्जित है। अक्तूबर 1994 में इसके प्रथम सफल प्रमोचन के पश्चात, जून 2017 तक लगातार 39 सफल मिशनों के साथ पी.एस.एल.वी. भारत के विश्वस्त एवं बहुमुखी विश्वसनीय प्रमोचक राकेट के रूप में उभर कर आया है। वर्ष 1994-2017 की अवधि के दौरान, राकेट ने 48 भारतीय उपग्रहों एवं विदेशी ग्राहकों के लिए 209 उपग्रहों का प्रमोचन किया।
इसके अतिरिक्त, राकेट ने सफलतापूर्वक दो अंतरिक्षयान - वर्ष 2008 में चंद्रयान-1 एवं वर्ष 2013 में मंगल कक्षित्र अंतरिक्षयान का प्रमोचन किया जिन्होंने क्रमश: चंद्र और मंगल तक यात्रा तय की।
वाहन की विशेषताऍं
ऊंचाई : 44 मी
व्यास : 2.8 मी
चरणों की संख्या : 4
उत्थापन द्रव्यमान : 320 टन (एक्स.एल.)
प्रकार : 3 पीएसएलवी-जी, पीएसएलवी-सीए, पीएसएलवी-एक्सएल)
पहली उड़ान : सितंबर 20, 1993
तकनीकी विशेषताऍं
सूर्य तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) के लिए नीतभार 1,750 कि.ग्रा.
पीएसएलवी ने अनेक उपग्रहों, विशेषकर आईआरएस श्रृंखला के उपग्रहों को निम्न पृथ्वी कक्षा में भेज कर इसरो के लद्दू घोड़े (वर्क हॉर्स ऑफ इसरो) का खिताब पाया है । यह 1,750 कि.ग्रा. तक भारी नीतभार को 600 कि.मी. की ऊँचाई पर सूर्य तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षा में ले जा सकता है।
उप भू-स्थिर अंतरण कक्षा के लिए नीतभार : 1,425 कि.ग्रा.
अपनी अद्वितीय विश्वसनीयता के कारण पी.एस.एल.वी. को विभिन्न उपग्रहों को भू-तुल्यकाली कक्षा तथा आईआरएनएसएस उपग्रह समूह के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भेजने के लिए भी प्रयुक्त किया गया है।
चतुर्थ चरण : पीएस4
पीएसएलवी सबसे ऊपरी चरण पीएस4 है, इसमें दो पृथ्वी संग्रहणीय तरल इंजन लगते हैं ।
इंजन : 2 x पी.एस.-4
ईंधन : एमएमएच + एमओएन
अधिकतम प्रणोद : 7.6 x 2 kN
तृतीय चरण : पीएस3
पीएसएलवी का तीसरा चरण ठोस रॉकेट मोटर होती है, जो प्रमोचन के वायुमंडलीय चरण के पश्चात ऊपरी चरणों को उच्च प्रणोद उपलब्ध कराती है।
ईंधन : एचटीपीबी
अधिकतम प्रणोद : 240 kN
द्वीतीय चरण : पी.एस.2
पीएसएलवी के दूसरे चरण में तरल नोदन प्रणाली केन्द्र द्वारा विकसित पृथ्वी संग्रहणीय तरल रॉकेट इंजन लगा होता है जिसे विकास इंजन के नाम से भी जाना जाता है ।
इंजन : विकास
ईंधन : यूडीएमएच + N2O4
अधिकतम प्रणोद : 799 kN
प्रथम चरण : पीएस1
पीएसएलवी में 6 ठोस स्ट्रैपऑन बूस्टरों द्वारा संवर्धित एस-139 ठोस रॉकेट मोटर का उपयोग किया जाता है ।
इंजन : एस139
ईंधन : एचटीपीबी
अधिकतम प्रणोद : 4800 kN
स्ट्रैपऑन मोटर :
पीएसएलवी द्वारा उसके पीएसएलवी-जी तथा पीएसएलवी-एक्स एल किस्म के रॉकेटों में पहले चरण के दौरान प्रणोद को बढ़ाने के लिए 6 ठोस रॉकेट स्ट्रैपऑन मोटरों का प्रयोग किया जाता है ।
ईंधन : एचटीपीबी
अधिकतम प्रणोद : 719 kN
भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जी.एस.एल.वी.)
प्रमोचक राकेट के बारे में
भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट मार्क II (जी.एस.एल.वी. मार्क II) भारत में विकसित सबसे बड़ा प्रमोचक राकेट है, जो वर्तमान में प्रचालन में है। यह चौथी पीढ़ी का प्रमोचक राकेट चार द्रव स्ट्रैप–ऑन से युक्त तीन चरणीय राकेट है। स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (सी.यू.एस.), जोकि उड़ान प्रमाणित है, जी.एस.एल.वी. मार्क II का तृतीय चरण है। जनवरी, 2014 से राकेट ने लगातार चार सफलताएं अर्जित की हैं।
वाहन की विशेषताएं
ऊंचाई : 49.13 मी
चरणों की संख्या : 3
उत्थापन द्रव्यमान : 414.75 टन
पहली उड़ान : अप्रैल 18, 2001
तकनीकी विवरण
भू-तुल्यकाली कक्षा को नीतभार : 2,500 कि.ग्रा.
जी.एस.एल.वी.के मुख्य नीतभार भू-तुल्यकाली कक्षा में संचालित इन्सैट श्रेणी के संचार उपग्रह हैं। अतः, इन उपग्रहों को जी.एस.एल.वी. द्वारा भू-तुल्यकाली अंतरण कक्षा में भेजा जाता है ।
निम्न पृथ्वी-कक्षा को नीतभार : 5,000 कि.ग्रा.
इसके अलावा 5 टन नीतभार निम्न पृथ्वी-कक्षा में स्थापित करने की क्षमता संपन्न जी.एस.एल.वी. भारी हों से लेकर कई छोटे उपग्रहों को प्रमोचित कर सकता है ।
तृतीय चरण : क्रायोजनिक ऊपरी चरण (सी.यू.एस.)
तरल नोदन प्रणाली केन्द्र, द्वारा क्रायोजनिक ऊपरी चरण परियोजना (सी.यू.एस.पी.) के अंतर्गत विकसित सी.ई.-7.5 भारत का पहला क्रायोजनिक इंजन है। सी.ई-7.5 इंजन में प्रज्वलन का चरणबद्ध प्रचालन चक्र होता है ।
ईंधन :एल.ओ.एक्स. + LH2
अधिकतम प्रणोद : 75 kN
प्रज्वलन काल : 720 से.
द्वितीय चरण : जी.एस-2
जी.एस.एल.वी. दूसरे चरण में विकास इंजन का प्रयोग किया जाता है। यह चरण पी.एस.एल.वी. लिया गया है जहां विकास इंजन ने पी.एस-2 के रूप में अपनी विश्वसनीयता सिद्ध की है।
इंजन : विकास
ईंधन : यू.डी.एम.एच. + N2O4
अधिकतम प्रणोद : 800 kN
ज्वलन काल : 150 से.
प्रथम चरण : जी.एस-1
जी.एस.एल.वी. प्रथम चरण भी पी.एस.एल.वी. के पी.एस.-1 से लिया गया है। इसकी 138 टन ठोस मोटर को चार तरल स्ट्रैप-ऑन मोटरों द्वारा संवर्धित किया जाता है।
इंजन : एस.139
ईंधन : एच.टी.पी.बी.
अधिकतम प्रणोद : 4700 kN
ज्वलन काल : 100 से.
स्ट्रैप-ऑन मोटर
जी.एस.एल.वी. में प्रयुक्त चार तरल इंजन पी.एस.एल.वी. के दूसरे चरण पी.एस.-2 का भारी रूपांतर है। इन चारों मोटरों में विकास इंजन का प्रयोग किया जाता है।
ईंधन : UDMH + N2O4
अधिकतम प्रणोद : 680 kN
ज्वलन काल : 160 से.
जी.एस.एल.वी. मार्क III
भावी प्रमोचित्र: जी.एस.एल.वी.-मार्क III
जी.एस.एल.वी. मार्क III इसरो द्वारा विकसित तीन-चरणों वाला भारी वाहक प्रमोचक राकेट है। राकेट में दो ठोस स्ट्रैप-ऑन, एक क्रोड द्रव बूस्टर और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण शामिल है।
जी.एस.एल.वी. मार्क III को भूतुल्यकाली अंतरण कक्षा (जी.टी.ओ.) में 4 टन श्रेणी के उपग्रहों या निम्न भू-कक्षा (एल.ई.ओ.) में लगभग 10 टन, जोकि जी.एस.एल.वी मार्कII की क्षमता से लगभग दो गुना है, का वहन करने हेतु डिजाइन किया गया है।
जी.एस.एल.वी. मार्कIII के दो स्ट्रैप-ऑन मोटर उसके क्रोड द्रव बूस्टर के दोनों ओर स्थित होते हैं। ‘एस.200’ के रूप में निर्दिष्ट, प्रत्येक स्ट्रैप-ऑन 205 टन के सम्मिश्र ठोस नोदक का वहन करता है और उनके प्रज्वलन से राकेट उड़ान भरता है। ‘एस200’, 140 सेकंडों तक कार्य करता है। स्ट्रैप-ऑन के प्रकार्यात्मक चरण के दौरान, एल110 द्रव क्रोड बूस्टर के दो विकास द्रव इंजनों का समूह राकेट के प्रणोद के संवर्धन के लिए उड़ान भरने के पश्चात 114 सेकंड बाद प्रज्वलित होंगे। उड़ान भरने के लगभग 140 सेकेंड पर स्ट्रैप-ऑन के पृथक होने के पश्चात, ये दोनों इंजन कार्य करते रहेंगे।
एल.वी.एम.3 की प्रथम परीक्षणात्मक उड़ान, एल.वी.एम.3-एक्स/सी.ए.आर.ई. मिशन ने 18 दिसंबर, 2014 को श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी तथा उड़ान के वायुमंडलीय चरण की सफलतापूर्वक जाँच की। इसी उड़ान में कर्मीदल माड्यूल वायुमंडलीय पुनःप्रवेश परीक्षण भी पूरा किया गया था। माड्यूल ने पुनःप्रवेश किया और योजनानुसार अपने पैराशूटों का प्रस्तरण किया तथा बंगाल की खाड़ी में उतरा।
जी.एस.एल.वी. मार्क III की प्रथम विकासात्मक उड़ान, जी.एस.एल.वी. मार्क III-डी1, ने 05 जून, 2017 को एस.डी.एस.सी. शार, श्रीहरिकोटा से जीसैट-19 उपग्रह को भूतुल्यकाली अंतरण कक्षा (जी.टी.ओ.) में सफलतापूर्वक स्थापित किया।
जी.एस.एल.वी. मार्क III की द्वितीय विकासात्मक उड़ान, जी.एस.एल.वी. मार्क III-डी2 ने 14 नवंबर, 2018 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, शार, श्रीहरिकोटा से उच्च क्षमता वाले संचार उपग्रह जीसैट-29 का सफलतापूर्वक प्रमोचन किया।
वाहन की विशेषताएं
ऊंचाई : 43.43 मी.
वाहन का व्यास : 4.0 मी.
ताप कवच का व्यास : 5.0 मी.
चरणों की संख्या : 3
उत्थापन द्रव्यमान : 640 टन
तकनीकी विवरण
भू-स्थिर अंतरण कक्षा के लिए नीतभार : 4,000 कि.ग्रा.
एल.वी.एम.-3 4 टन श्रेणी के जीसैट उपग्रहों को भू-स्थिर अंतरण कक्षा में भेजने में सक्षम होगा।
निम्न पृथ्वी कक्षा के लिए नीतभार : 8,000 कि.ग्रा.
एल.वी.एम.3 का शक्तिशाली क्रायोजनिक चरण भारी नीतभारों को 600 कि.मी. ऊँचाई पर स्थापित करने में सक्षम होगा ।
क्रायोजनिक ऊपरी चरण : सी-25
सी.ई.20 द्वारा शक्तिपोषित सी-25 भारत का सबसे बड़ा क्रायोजनिक इंजन है, जिसे इसरो के तिरुवनंतपुरम स्थित तरल नोदन प्रणाली केन्द्र, द्वारा विकसित किया गया है ।
Cryo Stage Height : 13.5 m
Cryo Stage Diameter : 4.0 m
Engine : CE-20
ईंधन : 27 tonnes of LOX + LH2
Thrust : 186 kN
ठोस रॉकेट बूस्टर : एस-200
एल.वी.एम. 3 में दो एस-200 ठोस रॉकेट बूस्टर लगे होते हैं जो उड़ान के लिए आवश्यक प्रचंड प्रणोद उपलब्ध कराते हैं ।
बूस्टर की ऊंचाई : 25 मी
बूस्टर का व्यास : 3.2 मी
ईंधन : 207 टन एच.टी.पी.बी. (नामीय)
प्रणोद : 9316 kN
निर्वात Isp : 274.5 से
ज्वलन काल : 130 से
मुख्य (कोर) चरण : एल.110 तरल चरण
एल.110 तरल चरण दो विकास इंजनों द्वारा शक्तिपोषित होता है, जिसे तरल नोदन प्रणाली केन्द्र द्वारा विकसित किया गया ।
चरण की ऊंचाई : 17 मी
चरण का व्यास : 4 मी
इंजन : 2 x विकास
ईंधन : 110 110 टन यू.डी.एम.एच. + N2O4
प्रणोद : 1598 kN
निर्वात Isp : 293 sec
ज्वलन काल : 200 से
परिज्ञापी राकेट
sounding rocket
परिज्ञापी राकेट एक या दो चरण वाले ठोस नोदक राकेट हैं जिनका अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु ऊपरी वायुमंडलीय क्षेत्रों के अन्वेषण हेतु प्रयोग किया जाता है। ये प्रमोचक यानों एवं उपग्रहों के प्रयोग हेतु वांछित नए अवयवों एवं उपप्रणालियों के आदिरूप की जांच या प्रमाणित करने के लिए आसानी से वहन करने योग्य आधार के रूप में काम करते हैं। थुंबा में 1963 में, थुंबा भूमध्यरेखीय राकेट प्रमोचन केंद्र (टी.ई.आर.एल.एस.) की स्थापना के साथ, जो चुम्बकत्व भूमध्यरेखा के समीप स्थित है, तब भारत में वायविकी एवं वायुमंडलीय विज्ञानों के कार्यक्षेत्र में महत्वपूर्ण उछाल हुआ। 21 नवंबर, 1963 को तिरुवनंतरपुरम, केरल के समीप थुम्बा से प्रथम परिज्ञापी राकेट के प्रमोचन से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई। परिज्ञापी राकेटों ने राकेट-वाहित यंत्रीकरण का प्रयोग करते हुए स्वास्थाने वायुमंडल के अन्वेषण को संभव बनाया। प्रथम राकेट रूस(एम-100) एवं फ्रांस (सेंचौर) से आयतित दो चरणों वाले राकेट थे। एम-100, 85 कि.मी. की तुंगता पर 70 कि.ग्रा. के नीतभार का वहन कर सका और सेंचौर लगभग 30 कि.ग्रा. के नीतभार को 150 कि.मी. तक पहुंचाने में सहायक बना।
इसरो ने स्वदेशी रूप से बने राकेटों का प्रमोचन सन 1965 में शुरू किया और प्राप्त अनुभव ठोस नोदक प्रौद्योगिकी में महारथ हासिल करने में अति महत्वपूर्ण था। सन 1975 में, सभी परिज्ञापी राकेट गतिविधियां रोहिणी परिज्ञापी राकेट (आर.एस.आर.) कार्यक्रम के तहत समेकित की गई थीं। 75 मि.मी. के व्यास वाला आर.एच.-75 वास्तव में प्रथम भारतीय परिज्ञापी राकेट था, जिसके बाद आर.एच.-100 एवं आर-एच.-125 राकेटों का निर्माण किया गया। परिज्ञापी राकेट कार्यक्रम आधारशिला समान था जिस पर इसरो में प्रमोचनयान प्रौद्योगिकी रूपी इमारत का निर्माण किया जा सका। विभिन्न स्थानों से परिज्ञापी राकेटों के एस साथ प्रमोचन द्वारा समन्वित अभियान आयोजित करना संभव हुआ है। एक दिन में कई परिज्ञापी राकेट प्रमोचित करना भी संभव है।
आरएलवी-टीडी
पुन:उपयोगी प्रमोचक राकेट-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आर.एल.वी.-टी.डी.) अंतरिक्ष में कम लागत पर पहुँच में सहायता हेतु पूर्ण रूप से पुन:उपयोगी प्रमोचक राकेट के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों में विकसित करने की ओर इसरो के प्रयासों में से सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण प्रौद्योगिकीय प्रयास है। आर.एल.वी.-टी.डी. का संरूपण एक अंतरिक्षयान के समान है तथा इसमें प्रमोचक राकेट तथा अंतरिक्षयान दोनों की ही जटिलताएं शामिल हैं। द्रुतगामी आर.एल.वी.-टी.डी. को विभिन्न प्रौद्योगिकीयों जैसे, अतिध्वनिक उडा़न, स्वायत्त लैंडिंग तथा उर्जायुक्त समुद्री यात्रा उडा़न के मूल्यांकन के लिए उडा़न परीक्षण स्थल के तौर पर कार्य करने के लिए संरूपणित किया गया है। भविष्य में इस राकेट को भारत के पुन:उपयोगी दो चरण वाले कक्षीय प्रमोचक राकेट के प्रथम चरण के रूप में विकसित किया जाएगा।
आर.एल.वी.-टी.डी. में ढाँचा (body), एक नासिका टोप, डबल डेल्टा पंख तथा द्वि उर्ध्वाधर पुच्छ शामिल है। इसमें संतुलित रूप से प्रतिस्थापित सक्रिय नियंत्रण सतह भी शामिल है जिसे एलिवोन और रूडर कहा जाता है। इस प्रौद्योगिकी प्रदर्शक को निम्न ज्वलन दर के लिए परंपरागत ठोस अभिवर्धक (459) द्वारा डिजाइन किया गया है तथा मैच सं:5 में अभिवर्धन किया गया। आर.एल.डी.-टी.वी. के विकास हेतु विशेष मिश्रधातु, संयुक्त पदार्थ तथा रोधन जैसी विशेष सामग्रियों का चयन तथा इसके अंगों के क्राफ्टिंग बहुत जटिल है तथा इसके लिए अति कुशल मानवशक्ति की आवश्यकता है। इस राकेट के निर्माण हेतु कई उच्च प्रौद्योगिकी तंत्र तथा जांच उपकरण का प्रयोग किया गया है।
आर.एल.वी-टी.डी. के उद्देश्य:
पंखयुक्त वस्तु का अतिध्वनिक ऐरो ऊष्मागतिक चित्रीकरण
स्वायत्त नौवहन, मार्गदर्शन तथा नियंत्रण (एन.जी.सी.) योजनाओं का मूल्यांकन
समेकित उडा़न प्रबंधन
तापीय सुरक्षा प्रणाली मूल्यांकन
उपलब्धियां
आर.एल.वी.-टी.डी. की एस.डी.एस.सी., शार, श्रीहरिकोटा से स्वायत्त नौवहन, मार्गदर्शन एवं नियंत्रण, पुन:उपयोगी तापीय सुरक्षा प्रणाली तथा पुन:प्रवेश मिशन प्रबंधन जैसी क्रांतिक सुरक्षा प्रणाली तथा पुन: प्रवेश मिशन प्रबंधन जैसी कांतिक प्रौद्योगिकियों को वैधीकृत करते हुए 23 मई, 2016 को सफलतापूर्वक उडा़न जांच की गई।
स्क्रैमजेट इंजन – टीडी
इसरो के पहले प्रायोगिक मिशन स्क्रैमजेट इंजन के वायुश्वसन प्रणोदन प्रणाली की प्राप्ति की दिशा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से 28 अगस्त, 2016 को सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।
300 सेकंड की उड़ान के बाद, श्रीहरिकोटा से लगभग 320 किलोमीटर पर वाहन बंगाल की खाड़ी में उतरा। श्रीहरिकोटा के भू केंद्रों से वाहन का उड़ान के दौरान सफलतापूर्वक अनुवर्तन किया गया था। इस उड़ान के साथ, क्रांतिक प्रौद्योगिकियां जैसे सुपरसोनिक गति में वायुश्वसन इंजन का प्रज्वलन, सुपरसोनिक गति में लौ का जारी रहना, हवा का अंतर्ग्रहन तंत्र और ईंधन अंतक्षेपण प्रणालियों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया है।
इसरो द्वारा डिजाइन किए स्क्रैमजेट इंजन ने हाइड्रोजन का ईंधन के रूप में और वायुमंडलीय हवा से ऑक्सीजन का ऑक्सीडाइजर के रूप में उपयोग किया है। अगस्त 28 का परीक्षण माख 6 का हाइपरसोनिक उड़ान के साथ इसरो के स्क्रैमजेट इंजन की पहली छोटी अवधि का प्रायोगिक परीक्षण है । इसरो का उन्नत प्रौद्योगिकी वाहन (एटीवी), जो एक उन्नत परिज्ञापी रॉकेट है सुपरसोनिक स्थिति में स्क्रैमजेट इंजन का हाल ही में किया परीक्षण में ठोस बूस्टर रॉकेट का उपयोग किया था । एटीवी से वहन किया स्क्रैमजेट इंजन का उत्थान के समय वजन 3277 किलोग्राम था ।