एस्ट्रोसैट मिशन
एस्ट्रोसैट, एक्स-रे, प्रकाशिकी तथा यू.वी. स्पैक्ट्रमी बैण्डों में एक साथ खगोलीय स्रोतों के अध्ययन हेतु पहला समर्पित भारतीय खगोलिकीय मिशन है। इसके नीतभार में पराबैंगनी (निकट तथा दूर), सीमित प्रकाशिकी और एक्स रे क्षेत्र (0.3 के.ई.वी. से 100 के.ई.वी. तक) के उर्जा बैण्ड शामिल हैं। एस्ट्रोसैट मिशन का एक विशेष लक्षण है कि यह एक मात्र उपग्रह सहित विभिन्न खागोलिकीय वस्तुओं के एक साथ बहु तरंगदैर्ध्य प्रेक्षणों में सहायता प्रदान करता है।
एस्ट्रोसैट को 1515 कि.ग्रा; के उत्थापन भार सहित भूमध्यरेखा पर 6 डिग्री के कोण पर 650 कि.ग्रा. पर आनत कक्षा में 28 सितंबर, 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से पी.एस.एल.वी.-सी30 द्वारा प्रमोचित किया गया। एस्ट्रोसैट मिशन की अपेक्षित न्यूनतम उपयोगी कालावधि 5 वर्ष है।
कक्षा में अंत:क्षेपण के बाद, एस्ट्रोसैट के दो सौर पैनल त्वरित सिलसिले में स्वत: ही प्रस्तरित हो गए। बेंगलूर स्थित इसरो दूरमिति, अनुवर्तन और आदेश संचार जाल (इस्ट्रैक) के मिशन प्रचालन काम्प्लैक्स (मॉक्स) अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र में उपग्रह के संपूर्ण मिशन काल के दोरान उपग्रह की देखरेख करता है।
एस्ट्रोसैट के पांच नीतभारों द्वारा प्राप्त वैज्ञानिकर आंकडों का मॉक्स में भू स्टेशन में अनुवर्तन किया गया। उसके बाद बेंगलूर के निकट स्थित बयलालू में भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान आँकडा़ केंद्र (155डी.सी.) द्वारा प्रसंस्करण, अभिसंग्रहण तथा वितरण किया गया।
एस्ट्रोसैट मिशन के वैज्ञानिक उद्देश्य है:
- न्यूट्रोन तारा तथा ब्लैक होल शामिल करते हुए द्विविआधारी तारा प्रणाली में उच्च उर्जा प्रक्रियाओं को समझना;
- न्यूट्रोन तारा के चुंबकीय क्षेत्र का आंकलन;
- हमारी आकाशगंगा से परे स्थित तारा प्रणालियों में तारा उत्पत्ति क्षेत्र तथा उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन;
- आकाश में नए संक्षिप्त चमकीले एक्स-रे स्रोत का संसूचन;
- पराबैंगनी क्षेत्र के ब्रहमाण्ड के सीमित गहन क्षेत्र सर्वेक्षण का निष्पादन।
वर्तमान में, सभी नीतभार प्रचलनात्मक है तथा ब्रहमाण्डीय स्रोतों का प्रेक्षण कर रहे हैं। अंतरिक्षयान और नीतभार सही स्थिति में हैं। पहले छह माह नीतभारों के निष्पादन प्रमाणन तथा अंशांकन हेतु समर्पित थे। उसके बाद, नीतभार द्वारा वैज्ञानिक प्रेक्षण शुरू हुए।